ईद की तैयारी (कहानी ) # सिफ़र
सुबह ऑफिस जाने के लिए घर से निकलते वक़्त अम्मी ने कहा ''आज 25 रोज़े हो
गए हैं तुम अपने लिए ईद के कपड़े कब लाओगे ?'' मैंने कहा ''थोड़ी फुर्सत मिल
जाये फिर मार्केट जाऊंगा, वैसे भी अभी टाइम ईद में'' अम्मी ने कहा ''अब
कहाँ टाइम है बस 4-5 बाक़ी दिन हैं। सबके कपडे ले आये हो बस खुद अपने लिए
वक़्त नहीं निकाल पा रहे हो, कल इतवार है तुम्हारे ऑफिस की छुट्टी है कल ही
जाकर कपडे ले आओ।'' मैंने कहा ''जी ठीक है, कल जाता हूँ इंशाल्लाह !''
इतना कहकर अम्मी से सलाम करके ऑफिस के लिए निकल गया। दूसरे दिन मार्किट
जाने का इरादा बन चुका था। दूसरे दिन मैंने अपना पर्स चेक किया उसमे कुल
630 रुपये थे, मैंने सोचा और पैसे एटीएम से निकाल लूंगा। मैंने अपने दोस्त
इमरान को कॉल किया उससे कहा'' ईद के कपडे लेने मार्केट जा रहा हूँ अगर तुम
फ्री हो चलो साथ, कई दिन से मुलाक़ात भी नहीं हुई है इसी बहाने मुलाक़ात हो
जाएगी और तफरीह भी हो जाएगी।'' इमरान ने कहा ''हाँ में फ्री हूँ घर आ जाओ
चलते हैं साथ'' मैंने कहा ''ठीक है थोड़ी देर में आता हूँ। ''
घर से बाइक लेकर इमरान के घर के लिए निकला। रास्ते मैं SBI का एटीएम
देखकर गाडी रोकी, एटीएम पर गया, सोचा पहले बैलेंस चेक कर लूँ। अकाउंट में
कुल 5380 रुपये बैलेंस था। मैंने सोचा 3000 रुपये निकाल लेता हूँ इतने में
आराम से शॉपिंग भी जाएगी और कुछ पैसे बच भी जायेंगे, फिर SBI का 3000
मिनिमम बैलेंस वाला रूल याद आ गया उससे काम बैलेंस अकाउंट में होगा तो
पैनल्टी लगेगी। झुंझलाते हुए मैंने खुद से कहा हद है यार ये रूल्स जनता के
फायदे के लिए बनाये जाते है या जनता को परेशान करने के लिए, सरकार बैंक
सब मिलकर जनता को परेशान करने पर तुले हुए हैं । फिर एटीएम से 2000 रुपये
ही निकाले और बाहर आया तो देखा सड़क पर भीड़ जमा है। पास जाकर देखा तो एक 5-6
का बच्चा सड़क पर लहूलुहान हुआ है, उसके सर से खून बह रहा है, हाथ पैर छिल
गए हैं, बच्चा तकलीफ की वजह से रो रहा हैं और लोग भीड़ लगाकर देख हैं।
बच्चा हुलिए से बहुत गरीब परिवार का लग रहा है, मैले कुचले से कपडे,
बेतरतीब बड़े और बिखरे बाल। तभी एक महिला रोते हुए भीड़ को चीरते हुए ''हे
भगवान् मेरे बच्चे को क्या हुआ ?'' कहते हुए आई। सड़क पर बच्चे के पास
बैठकर उसका सर गोद में रखकर रोने लगी। महिला हुलिए से मज़दूर लग रही थी।
उसे देखकर भीड़ में शामिल लोग हिक़ारत की नज़रों से उसे देखते हुए गुस्से में
कहने लगे ''जब तुम लोग बच्चों को संभाल नहीं सकते तो पैदा क्यों करते
हो ? यहाँ वहां सड़क पर मरने के लिए छोड़ देते हो।'' कुछ लोग बता रहे थे
एक्सीडेंट करने वाला रुका नहीं फ़ौरन भाग गया नहीं तो उससे बच्चे के इलाज के
लिए पैसे ले लेते। कुछ लोग कहने लगे ''एक्सीडेंट केस है पुलिस को फ़ोन करो,
कुछ कह रहे थे इसे किसी सरकारी हॉस्पिटल ले जाओ।'' सब सिर्फ बाते कर रहे
थे कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था। मैंने देखा सड़क के दूसरी तरफ एक
प्राइवेट हॉस्पिटल है, मैंने बच्चे की मां से कहा ''सामने हॉस्पिटल है इसे
वहां ले चलते हैं पहले ही काफी खून बह गया है इसे जल्दी ट्रीटमेंट की
जरुरत है'' ये कहकर उसके जवाब का इन्तिज़ार किये मैंने बगैर बच्चे को
गोद में उठाया और हॉस्पिटल की तरफ बढ़ चला, बच्चे की मां मेरे पीछे पीछे चल
पड़ी। भीड़ में शामिल लोग मुझे बहुत ही अजीब नज़रों से देख रहे थे।
हॉस्पिटल
पहंचते ही मैंने नर्स से कहा '' जल्दी डॉक्टर को बुलाइये, बच्चा बहुत
ज़ख़्मी है, प्लीज़ जल्दी इसका ट्रीटमेंट शुरू करवाइये।'' नर्स ने पूछा
''क्या हुआ था ये इतना ज़ख़्मी क्यों है ?'' मैंने कहा ''एक्सीडेंट'' नर्स
ने कहा ''फिर तो ये पुलिस केस है, पुलिस को इन्फॉर्म करना होगा।'' इतनी
देर में एक डॉक्टर भी वहां आ गए। ''मैंने कहा पुलिस को हम बाद में भी
इन्फॉर्म कर सकते हैं पहले प्लीज़ इसका ट्रीटमेंट शुरू करवाइये।'' डॉक्टर
ने बच्चे और उसकी माँ को देखा फिर मेरी तरफ देखकर बोले ''वो तो सब ठीक है
लेकिन इसके ट्रीटमेंट का बिल कौन देगा ?'' मैंने कहा ''आप उसकी फ़िक्र मत
कीजिये सब हो जायेगा, लेकिन आप प्लीज़ जल्दी ट्रीटमेंट शुरू करवाइये।''
डॉक्टर ने हाँ में सर हिलाया और नर्स को बच्चे को ड्रेसिंग रूम में ले जाने
को कहा। कम्पाउण्डर और नर्स बच्चे को स्ट्रेचर पर लिटाकर अंदर ले गए।
उस बच्चे की माँ ने भी अंदर जाने की कोशिश की तो नर्स ने कहा 'आप यही
रुकिए।'' बच्चे की माँ वही दीवार से टेक लगाकर खड़ी हो गई। शायद वो मन ही
मन अपन बच्चे की सलामती की लिए दुआ कर रही थी। ''मैंने पूछा आप कहां
रहती हो और इस बच्चे की पिता कहाँ है ? उन्हें बच्चे के एक्सीडेंट की
जानकारी देना होगी।'' उसने किसी गांव का नाम बताया और कहा ''हम गांव से
यहाँ मज़दूरी के लिए आएं हैं , जहाँ एक्सीडेंट हुआ था में वही पास की एक
साइट पर मज़दूरी कर रही थी, इसके पिता दूसरी साइट पर मज़दूरी के लिए गए हुए
हैं, शाम को ही लौटेंगे, यहाँ हमारा कोई घर नहीं हैं, बस जहां साइट पर काम
लगता हैं वही रुक जाते हैं।'' मैंने कहा ''ठीक है, लेकिन बच्चे का ध्यान
रखा कीजिये खेल खेल मैं सड़क पर आ गया होगा और एक्सीडेंट हो गया होगा।''
तभी नर्स बहार आई उसने कहा ''चोट गहरी है, टांके लगाने होंगे, आप अभी
फिलहाल कैश काउंटर पर 1000 रुपये जमा करवा दीजिये और यह कुछ दवायें और
ज़रूरी चीज़ें मेडिकल से ले आइये, हमने पुलिस को इन्फॉर्म कर दिया है वो अभी
आते ही होंगे, आप बच्चे को लेकर आये हैं इसलिए हो सकता है पुलिस आपके बयान
की ज़रूरत पड़े इसलिए उनके आने तक आप रुकिएगा।'' यह कहकर एक परचा मेरे हाथ
में थमा दिया। मैंने कहा ''ठीक है।'' नर्स की बात सुनकर बच्चे की माँ ने
आगे आकर अपना हाथ आगे किया उसमे 1 सौ का नोट और 2-3 मुड़े तुड़े से 10-10
के नोट थे। उसने कहा रूआंसी आवाज़ में कहा ''मेरे पास बस यही पैसे हैं।
मैंने कहा ''ये आप रखिये।'' ये कहकर मैंने कैश काउंटर पर जाकर पैसे जमा
किये और बाक़ी चीज़े लेने मेडिकल पर चला गया।
जब वापस लौटा
तो देखा की 2 पुलिस वाले उस महिला के पास खड़े हुए हैं और उसे डांट रहे हैं,
''बच्चे का ख्याल क्यों नहीं रखते तुम लोग, सड़क पर क्यों छोड़ दिया ? अगर
मर जाता तो।'' मैंने वह पहुंचकर सामान नर्स को दिया। एक पुलिस वाले ने
मुझसे पुछा ''बच्चे को हॉस्पिटल तुम ही लाये थे ?'' मैंने कहा ''हाँ में
ही लाया था।'' मेरी बात सुनकर उस पुलिस वाले ने दूसरे पुलिस वाले की तरफ
देखा। फिर दूसरे ने मुझसे पुछा ''जिसने एक्सीडेंट किया क्या तुम ने उसे
देखा ? उसकी गाडी का नंबर नोट किया ?'' मैंने कहा ''नहीं देखा जब में वह
पंहुचा तो वह भीड़ थी, एक्सीडेंट करने वाला भाग चूका था, कुछ लोग कह रहे थे
वो कोई काले रंग की बाइक पर था।'' अब पहले पुलिस वाले ने मुझे घूरकर देखा
और कहा ''कहीं तुमने ही तो एक्सीडेंट नहीं किया ?, और अब बचने के लिए खुद
ही अस्पताल ले आये हो।'' उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन
मेने खुद के गुस्से को काबू करते हुए जवाब दिया ''ये बच्चा वहां सड़क घायल
पड़ा था
लोग तमाशा देख रहे थे, इंसानियत के नाते में इलाज के लिए यहाँ ले आया और
आप मेरे ऊपर ही इलज़ाम लगा रह हैं। दोनों पुलिसवालों ने एक दूसरे की तरफ
देखा फिर एक बोला ''इलज़ाम नहीं लगा रहे पूछताछ करना हमारा काम ही है, अगर
एक्सीडेंट करने वाले की पहचान हो जाती तो उससे बच्चे के इलाज के लिए पैसे
दिलवा देते।'' फिर मेरा नाम, पता फ़ोन नंबर सब नोट किया, साइन करवाए, और
फिर बच्चे की माँ से कहा ''थाने आकर एफ.आई.आर. की कॉपी ले जाना।'' फिर
नर्स से बच्चे की हालतके बारे में पूछा और चले गए।
इतनी
देर में बच्चे के टांके लग गए थे और मरहम पट्टी भी हो गई थी। डॉक्टर ने
ड्रेसिंग रूम से बाहर आकर कहा ''हमने टांके लगा दिए हैं, जल्दी ही ठीक हो
जायेगा, ज़ख्म भरने की दवा भी लिख दी है वो टाइम से दीजियेगा, चेकउप और मरहम
पट्टी के लिए 2 दिन बाद ले आइयेगा।'' मैंने डॉक्टर और नर्स को ''थैंक्स''
कहा। डॉक्टर चले गए। नर्स ने कहा ''आप बच्चे को घर ले जा सकते हैं और
कॅश काउंटर पर 400 रुपये और जमा कर दीजिये।'' यह कहकर दवाएं बच्चे की माँ
के हाथ दे दीं । मैंने कहा ''ठीक है। '' यह कहकर में ड्रेसिंग रूम में
बच्चे के पास गया, बच्चे की माँ भी मेरे पीछे आ गई, उसने बच्चे को गोद में
उठाकर उसे गले लगाकर रोने लगी। मैंने कहा ''आप रोइये नहीं ये जल्दी ही ठीक
हो जायेगा, इसे ले जाइये और ध्यान रखियेगा ।'' उसने हाथ जोड़कर मुझे
शुक्रिया कहा, उसकी आँखों में कृतज्ञता के आंसू थे, वो लगातार मुझे दुआयें
दे रही थी। नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा आप जैसे लोग बहुत ही कम है जो सिर्फ
इंसानियत के नाते दूसरों की मदद करते हैं। मैंने नर्स को ''थैंक्स''
कहा। फिर कैश काउंटर पर जाकर पैसे जमा किये। एटीएम से जो 2000 रुपये
निकाले थे हॉस्पिटल का बिल और मेडिकल का बिल मिलाकर 1750 रुपये खर्च हो
चुके थे, उसमे से अब सिर्फ 250 रुपये ही और बचे थे। मैंने सोचा 2 दिन बाद
बच्चे की ड्रेसिंग फिर से होना है उस वक़्त उसकी माँ को पैसों की ज़रूरत
होगी इसलिए ये पैसे उसे ही दे दूंगा, वैसे भी इतने कम पैसों में तो मेरे
कपडे आएंगे भी नहीं। यही सोचते हुए वापस आया तो देखा बच्चे की माँ
ड्रेसिंग रूम के बहार बच्चे को गोद में लेकर खड़ी हुई है। में वहां पहुंचा
तो उसने फिर से वही सौ का नोट और 10-10 के नोट देने देते हुए कहने लगी
''अभी तो बस मेरे पास यहीं हैं, आप बता दीजिये कुल कितना खर्चा हुआ हैं अभी
हम एक महीना इसी शहर में मज़दूरी करेंगे जाने से पहले आपको बाक़ी के पैसे
भी लौटा देंगे।'' उसकी बात सुनकर मैंने दिल में खुद से कहा ''ये गरीब ज़रूर
हैं लेकिन इनका भी आत्मसम्मान है, ये किसी का क़र्ज़ रखना नहीं चाहते, वाक़ई
में लोग सच्चे स्वाभिमानी हैं। मैंने कहा ''ये पैसे आप रखिये अभी 2-3 बार
और ड्रेसिंग की ज़रूरत पड़ेगी उस वक़्त आपको पैसों की ज़रूरत होगी।'' ये कहकर
250 और उसके हाथ में रखकर में हॉस्पिटल से बाहर चला आया। बाहर आकर याद
आया मेरी गाडी तो एटीएम के पास ही खड़ी हुई है। गाडी के पास पहुंचा तभी
इमरान का फ़ोन आ गया वो कह रहा ''अरे भाई कहाँ हो यार, थोड़ी देर का बोलकर
अभी तक नहीं आये, कब से वेट कर रहा हूँ, मार्केट चलना है या नहीं।'' मैंने
कहा ''अब नहीं जाना।'' उसने पूछा ''क्यों ?'' मैंने कहा ''अब ज़रूरत
नहीं है।'' उसने कहा ''कपडे ले लिए क्या ?'' मैंने कहा ''हाँ '' उसने पूछा
''कहाँ से लिए ?'' मैंने कहा ''ये समझ लो जन्नत से मिल गए !'' उसने कहा
''क्या कह रहे हो मैं समझा नहीं'' मैंने कहा ''तुम्हारे पास ही आ रहा हूँ
मिलकर समझा दूंगा, '' अल्लाह हाफ़िज़ कहकर फ़ोन काटा और गाडी स्टार्ट करके
इमरान के घर की तरफ चल दिया। उस बच्चे की मदद करके मुझे बहुत ख़ुशी और दिल
में सुकून व इत्मीनान महसूस हो रहा था, यक़ीनन ये सुकून और इत्मीनान मार्केट
से ईद की शॉपिंग करने मिल ही नहीं सकता था। ऐसा लग रहा था जैसे मैंने इस
बार सीधे जन्नत से ईद की शॉपिंग की हैं।
लेखक : शहाब खान 'सिफ़र'
बेहतरीन कहानी
ReplyDeleteशुक्रिया
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