निंदा आयोग - व्यंग्य #सिफ़र
देश-दुनिया
में आये दिन कोई न कोई घटना होती रहती है और सरकार / जनप्रतिनिधि उस घटना
की निंदा करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर लेते हैं और बेचारी जनता वो तो
सिर्फ निंदा के अलावा कुछ और कर भी क्या सकती है । जैसी घटना वैसी निंदा,
इस निंदा के भी 2 प्रकार होते हैं एक साधारण निंदा और एक कड़ी निंदा। कुछ
लोग कड़ी निंदा करने के विशेषज्ञ होते हैं तो किसी को निंदा करनी ही नहीं
आती। कई बार सरकार / जनप्रतिनिधि किसी घटना की सही समय पर निंदा नहीं कर
पाते (क्योंकि उस घटना की निंदा करने से उनके वोट बैंक पर असर पड़ सकता है )
ऐसे में जनता गुस्से में आकर सरकार की निंदा सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक
करना शुरू कर देती है। कई बार जनता सवाल उठती है की एक घटना की निंदा की
और दूसरी घटना को अनदेखा कर दिया। तब सरकार के लिए बड़ी विकट स्थिति
उत्पन्न हो जाती है। कई बार माननीय के समर्थक जनता की निंदा पर बुरा भी मान
जाते हैं और फिर एक दूसरे पर कीचड उछलने का खेल शुरू हो जाता है। कभी कभी
विशेष परिस्थिति में माननीय की निंदा करने पर मानहानि को मुक़दमा भी दर्ज
हो जाता है तो कई बार लोगों को जेल की हवा भी कहानी पड़ती है।
राजनीति
में निंदा की परम्परा सदियों से चली आ रही है। राजनेताओं द्वारा एक दूसरे
की निंदा करना (कीचड उछालना) जन्मसिद्ध अधिकार जैसा है। कभी एक राजनेता
दूसरे पर किसी घटना की निंदा न करने पर उस राजनेता की निंदा करते है तो कभी
किसी बात पर अनावश्यक निंदा करने पर निंदा करते हैं। राजनीती को निंदा ने
हर तरफ से ऐसे घेर रखा है जैसे हमें हर तरफ से हवा ने घेरा हुआ है।
जब देश में हर तरफ निंदा का माहौल बनता जा रहा है तो सरकार को राष्ट्रीय निंदा आयोग की स्थापना करनी चाहिए। वैसे तो हमारे देश में पहले ही बहुत सारे आयोग है और नए आयोग भी बनते रहते हैं। हर आयोग का एक विशेष काम और कार्यक्षेत्र होता है (ऐसा सरकार मानती है) । राष्ट्रीय निंदा आयोग बने उसकी राज्य इकाइयां राज्य निंदा आयोग, उसकी जिला इकाइयां, वार्ड स्तर इकाई, मोहल्ला इकाई आदि। अब सवाल ये उठता है की इससे फायदा क्या होगा ? अरे भाई एक निठल्ले बेकार बैठे राजनेता को आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जायेगा मोटी तनख्वाह और मुफ्त की सुख सुविधा मिलेगी (अब हर रिटायर राजनेता को राजभवन या मार्गदर्शक मंडल तो नहीं बिठा सकते न), राज्यों और ज़िलों में बेकार बैठे राजनेताओं अध्यक्ष पद की सुविधाओं का लाभ मिलेगा, छुटभैये नेताओं को वार्ड इकाई और मोहल्ला इकाई का अध्यक्ष बनाया जा सकता सकता है (वरना आजकल हर छुटभैया नेता विधायक या पार्षद के चुनाव में टिकट मांगने लगता है) पार्टी के अन्य असंतुष्ट नेताओं को आयोग में किसी न किसी पद पर आसीन करके संतुष्ट किया जा सकता है (फालतू बैठकर पार्टी की छाती पर मूंग दलें उससे अच्छा तो आयोग में कही सेट कर दो ताकि जो पैसा/सुविधा मिले उसी में खुश रहें) । आयोग को एक बड़ा बजट अवंटित किया जाये ताकि आयोग का काम सुचारु रूप से चलता रहे (अध्यक्ष /सदस्यों की सुख सुविधाओं में कोई कमी न आये) आयोग का ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल हो जहाँ से निंदा ट्वीट की जाये, फेसबुक/इंस्टाग्राम पेज हो और सोशल मीडिया के अन्य सभी प्लेटफार्म पर ऑफिशियल अकाउंट हो।
जब देश में हर तरफ निंदा का माहौल बनता जा रहा है तो सरकार को राष्ट्रीय निंदा आयोग की स्थापना करनी चाहिए। वैसे तो हमारे देश में पहले ही बहुत सारे आयोग है और नए आयोग भी बनते रहते हैं। हर आयोग का एक विशेष काम और कार्यक्षेत्र होता है (ऐसा सरकार मानती है) । राष्ट्रीय निंदा आयोग बने उसकी राज्य इकाइयां राज्य निंदा आयोग, उसकी जिला इकाइयां, वार्ड स्तर इकाई, मोहल्ला इकाई आदि। अब सवाल ये उठता है की इससे फायदा क्या होगा ? अरे भाई एक निठल्ले बेकार बैठे राजनेता को आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जायेगा मोटी तनख्वाह और मुफ्त की सुख सुविधा मिलेगी (अब हर रिटायर राजनेता को राजभवन या मार्गदर्शक मंडल तो नहीं बिठा सकते न), राज्यों और ज़िलों में बेकार बैठे राजनेताओं अध्यक्ष पद की सुविधाओं का लाभ मिलेगा, छुटभैये नेताओं को वार्ड इकाई और मोहल्ला इकाई का अध्यक्ष बनाया जा सकता सकता है (वरना आजकल हर छुटभैया नेता विधायक या पार्षद के चुनाव में टिकट मांगने लगता है) पार्टी के अन्य असंतुष्ट नेताओं को आयोग में किसी न किसी पद पर आसीन करके संतुष्ट किया जा सकता है (फालतू बैठकर पार्टी की छाती पर मूंग दलें उससे अच्छा तो आयोग में कही सेट कर दो ताकि जो पैसा/सुविधा मिले उसी में खुश रहें) । आयोग को एक बड़ा बजट अवंटित किया जाये ताकि आयोग का काम सुचारु रूप से चलता रहे (अध्यक्ष /सदस्यों की सुख सुविधाओं में कोई कमी न आये) आयोग का ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल हो जहाँ से निंदा ट्वीट की जाये, फेसबुक/इंस्टाग्राम पेज हो और सोशल मीडिया के अन्य सभी प्लेटफार्म पर ऑफिशियल अकाउंट हो।
अब
आप कहोगे इसमें जनता का क्या फायदा ? अरे भाई आज तक कभी किसी आयोग से जनता
को फायदा मिला है जो अब मिलेगा ? इतने सारे नेताओं को रोज़गार मिल रहा है
इससे बड़ा फायदा क्या हो सकता है ? आयोग का केवल एक ही काम हो हर घटना की
निंदा करना। घटना अगर राष्ट्रीय / अंतराष्ट्रीय स्तर की हो तो राष्ट्रीय
अध्यक्ष निंदा करेंगे राज्य स्तर की हो तो उसके अध्यक्ष और छोटी हो तो जिला
अध्यक्ष यानि जैसी घटना वैसी निंदा। लेकिन इसमें कुछ विवाद भी हो सकते
हैं जैसे किसी छोटी घटना की राष्टीय आयोग ने निंदा कर दी जबकि वो अधिकार
राज्य आयोग का था या फिर किसी घटना पर पहली निंदा का अधिकार राष्ट्रीय आयोग
का था और पहले किसी छोटी इकाई ने निंदा कर दी या फिर किसी घटना की किसी ने
भी निंदा नहीं की / इन सब सब समस्यों से निपटने के लिए विशेष नियम बनाये
जाएँ, हर तरह की घटना की एक लिस्ट बनाई जाये और प्रकार की घटना के लिए अलग
समिति हो। एक प्रोटोकॉल हो की पहले राष्ट्रीय आयोग निंदा करेगा फिर
क्रमानुसार अन्य इकाइयां निंदा करे।
मान
लीजिये आयोग की स्थापना हो गई अब ज़रा कल्पना कीजिए किस तरह की ख़बरें आएंगी
''राजू साइकिल से गिरा निंदा आयोग की मोहल्ला इकाई ने की निंदा'' ''महेश
ने सुनील को चांटा मारा सुनील ने जिला निंदा आयोग से घटना की निंदा मांग
की, जिला आयोग ने मांग ठुकराई कहा ये काम वार्ड/मोहल्ला इकाई का है, सुनील
ने अपने समर्थको के साथ जिला आयोग के कार्यालय के बाहर धरना देना का किया
ऐलान'' ''एग्जाम में गुड्डू के मार्क्स कम आने पर मोहल्ला इकाई ने की
गुड्डू की निंदा गुड्डू ने मोहल्ला इकाई पर किया मानहानि का मुक़दमा'' आदि
कई तरह की ख़बरें आएंगी। जनता को और कोई फायदा मिले न पर राजनेताओं का तो
फायदा हो ही जायेगा। उम्मीद है सरकार जल्दी ही इस विषय पर संज्ञान लेकर
निंदा आयोग की स्थापना करने पर विचार विमर्श करेगी।
ये
सब पड़ने के बाद हो सकता है आपका मन मेरी निंदा करने के लिए मचल रहा हो तो
निसंकोच आप मेरी निंदा करके अपने मन को शांत कर सकते हैं।
शहाब ख़ान 'सिफ़र'
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