गरीब के लिए शहर बंद (कहानी) #सिफ़र
रामू थके और बोझिल क़दमों से चेहरे पर मायूसी लिए खाली जेब घर वापस लोट
रहा था । सुबह घर से बहुत उम्मीद लिए निकला था। आज पोते राजू का जन्मदिन
है सोचा था कुछ ज़्यादा पैसे मिल जायेंगे तो बच्चे के लिए कोई खिलौना और
मिठाई लेकर जाऊंगा। लेकिन आज तो एक पैसा भी नहीं मिला। सड़क किनारे अपनी
धुन खोया में चला जा रहा है। अचानक शोर सुनकर उसका ध्यान सड़क की तरफ गया तो
देखा किसी राजनैतिक पार्टी का जुलूस चला आ रहा। जुलूस रामू के पास से
होकर गुज़र रहा है, हाथों में पार्टी के झंडे और पोस्टर लिए नारे लगते हुए
लोग बड़े चले जा रहे हैं । बढ़ती महंगाई, गरीबी और बेरोज़गारी के विरोध में
विपक्षी पार्टी ने शहर बंद का आयोजन रखा था, ये जुलूस उसकी का था। रामु
वहीँ रूककर जुलूस को देखने लगा। जुलूस में शामिल कुछ लोग आपस में बात करते
हुए चल रहे हैं आज का हमारा बंद का कार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा हमने पूरे
शहर में कोई बाज़ार कोई दुकान खुलने नहीं दी । उनकी बात सुनकर रामू को आँखों
में आंसू आ गए । वही सड़क किनारे अपने सामान की गठरी के साथ आँखे मूंदकर बैठ गया । उसके आँखों में गुज़रे वक़्त के वाक़ये हैं । अपनी यादों में वो कुछ
साल पीछे लोट आया है । जब रामू का 25-26 साल का बेटा ज़िंदा था ।परिवार में रामू उसकी पत्नी, बेटा, बहु और पोता था । परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक
नहीं थी। रामू का बेटा संतोष मज़दूरी करता था जिससे उसका परिवार चल रहा
था। रामू की इच्छा थी की उसका पोता राजू पढ़ लिखकर उनका नाम रोशन करे।
जैसे
तैसे जीवन चल रहा था की अचानक एक दिन रामू के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़
टूट पड़ा, रामू का बेटा संतोष शहर में बन रहे एक शॉपिंग मॉल में अन्य
मज़दूरों के साथ काम कर रहा था। अचानक मॉल की छत गिर गई जिसमे संतोष के साथ
कुछ अन्य मज़दूरों की भी मलबे में दबने से मौत हो गई। रामू के बुढ़ापे की
लाठी ही टूट गई, उसका परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। परिवार में
दुःख और मुसीबत का माहौल छा गय। घर का एकलौता कमाने वाला नहीं रहा। मॉल
में हुई दुर्घटना का कुछ मुआवज़ा जो रामू के परिवार को मिलना था उसका एक बड़ा
हिस्सा ठेकेदार ने चालबाज़ी से हथिया लिया बहुत थोड़े से पैसे मुआवज़े के तौर
पर मिले वो भी जल्दी ही ख़त्म हो गए। रामू ने सोचा अब किसी भी उसे ही
सारी ज़िम्मेदारी संभालनी है, लेकिन परेशानी ये थी की रामू की उम्र 60 साल
से ज़्यादा थी बुढ़ापे की वजह से मेहनत का कोई काम वो कर नहीं सकता था ऊपर से
आँखों में मोतियाबिंद की वजह से ठीक से दिखाई भी नहीं देता था। परिवार की
ख़राब स्थिति देखकर रामू ने परिवार के साथ मिलकर ये विचार किया की रामू की
पत्नी और बहु घर में मिटटी और लकडी से खिलोने और सजावटी सामान बनाएंगे और रामू वो सामान बाजार में ले जाकर बेचा करके इससे कुछ न कुछ आमदनी तो हो ही
जाया करेगी। अब रामू की पत्नी और बहु घर में खिलोने और सजावटी सामान बनती
और रामू उन्हें बाज़ार में जाकर बेचता। इससे रोज़ के 50 - 60 रुपये मिल
जाते थे, जैसे तैसे मुश्किल से परिवार का गुज़ारा चल रहा था। रामू का पोता 5
साल का हो गया था, आज उसका जन्मदिन था सुबह निकलते वक़्त उसने पोते को गोद
में लेकर प्यार किया और कहा आज शाम को घर लौटते वक़्त तुम्हारे लिए मिठाई और
जन्मदिन का उपहार लेकर आऊंगा, उसकी बात सुनकर राजू का चेहरा ख़ुशी से खिल
उठा, राजू के चेहरे की ख़ुशी देखकर रामु को बड़ा सुकून मिला। वो ख़ुशी ख़ुशी
घर से बाज़ार जाने के लिए निकला।
यही सब सोचते सोचते रामू ने आंखे खोली तो देखा जुलूस पास के मैदान में जाकर एक सभा में शामिल
हो गया है । आज शहर बंद होने की वजह से बाज़ार में कोई दूकान नहीं खुली
थी। पूरे बाज़ार में सन्नाटा रहा। बाजार बंद होने रामू का कोई सामान नहीं
बिका। रामु की जेब में पैसे नहीं है वो सोच रहा है अब घर जाकर पोते से
कैसे नज़रें मिला पायेगा। इसी सोच में गुम था तभी मैदान में चल रही सभा में
नेताजी ने अपना भाषण शुरू किया। नेताजी कह रहे हैं हमने बढ़ती महंगाई,
गरीबी और बेरोज़गारी के विरोध में शहर बंद का आयोजन रखा था। हमारा आयोजन सफल
रहा, हम ये लड़ाई आम जनता और गरीबों के लिए लड़ रहा हैं, हमारे इस संघर्ष का
फायदा गरीबों को मिलेगा । नेताजी की बाते सुनकर सभा में शामिल लोग
तालियां बजा रहे हैं, और रामू सोच रहा है अगर ये सब गरीब के फायदे लिए
किया गया था तो आज उसकी जेब खाली क्यों है ? उसकी आँखों में आंसु क्यों है
? आखिर क्यों ?
शहाब ख़ान 'सिफ़र'
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