स्पेशल पेशेंट - (कहानी) #सिफ़र
महेश
हॉस्पिटल में अपनी बीमार माँ के पास बैठा हुआ है। रात से की माँ की खांसी
बढ़ गई है और बुखार भी ज़्यादा है। वार्ड में मरीज़ों के चेकउप के लिए
डॉक्टर के आने का वक़्त हो गया है। वो सोच रहा है की डॉक्टर आ जाएं तो सारी
तकलीफ बताऊंगा शायद डॉक्टर दवा बदल दे तो उससे आराम मिले। महेश की माँ
की तबियत पिछले एक महीने से काफी ख़राब थी, मोहल्ले के डॉक्टर से काफी इलाज
कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ 3 दिन पहले सरकारी अस्पताल में भर्ती किया
है। जब अस्पताल में भर्ती किया था तब पूरा अस्पताल मरीज़ों से भरा हुआ था,
वार्ड में एक भी बेड खाली नहीं था तो माँ को भर्ती करके वार्ड के बाहर एक
बैंच पर ही लिटा दिया था। 2 दिन से वहीँ इलाज चल रहा है। 2 दिन से बैंच
पर लेटे रहने की वजह से माँ के कमर में दर्द होने लगा है, माँ को पहले ही
इतनी तकलीफ थी अब एक और तकलीफ बड़ गई है ये सोचकर महेश काफी परेशान है। कल
वार्ड से कुछ किसी मरीज़ों की छुट्टी होने की वजह से बेड खाली हुए हैं ,
महेश नर्स और वार्ड अटेंडेंट के पास जाकर उससे माँ को वार्ड में बेड पर
शिफ्ट करने के लिए मिन्नतें करता है। थोड़ी न नुकर के बाद आखिर वो लोग मान
जाते हैं और माँ को वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है हालाँकि इसके लिए
वार्ड अटेंडेंट ने उससे 100 रुपये ले लिए।
पूरा
वार्ड मरीज़ों से भरा हुआ है। वार्ड में लगभग 20 पलंग हैं। थोड़ी देर में
डॉक्टर वार्ड में आते हैं और मरीज़ों के पास जाकर उनका हालचाल पूछकर नर्स
को निर्देश देने लगते हैं। महेश देखता है की डॉक्टर ने कुछ मरीज़ों का बहुत
अच्छी तरह से चेकअप किया, उनके प्रति डॉक्टर का व्यवहार भी काफी अच्छा रहा
और बाक़ी का सिर्फ हालचाल पुछा और नर्स को निर्देश देकर आगे बड़ गए।
डॉक्टर महेश की माँ के पास आये औपचारिक रूप से हालचाल पुछा और नर्स से वही
दवा चलने देने का कहकर आगे बढ़ गए। महेश ने डॉक्टर को माँ की तकलीफ के
बारे में बताना चाहा लेकिन डॉक्टर ने बीच में ही टोककर रोक दिया और नर्स
को निर्देश देकर आगे बढ़ गए। इससे महेश को बहुत निराशा हुई। महेश ने देखा
की डॉक्टर साहब ने जिन मरीज़ों का चेकअप अच्छी तरह से किया अस्पताल में नर्स
और वार्ड अटेंडेंट का व्यवहार भी बाक़ी मरीज़ों के तुलना में उनके प्रति
काफी अच्छा है।
महेश
समझ नहीं पा रहा है की ऐसा क्यों हो रहा है। महेश वार्ड अटेंडेंट के पास
जाकर उससे इस बारे में पूछता है, वार्ड अटेंडेंट कहता है ''अरे भैया वो
सब डॉक्टर साहब के पर्सनल पेशेंट हैं इसलिए उनका ध्यान रखना पड़ता है'' महेश
कहता है ''पर्सनल पेशेंट मतलब ? में कुछ समझा नहीं'' वार्ड अटेंडेंट हँसते
हुए कहता है ''डॉक्टर साहब का एक क्लीनिक है, जो पेशेंट वहां जाकर फीस
देकर दिखाते हैं अस्पताल में उन्हें ज़्यादा तवज्जोह दी जाती है, ये समझ लो
की क्लीनिक में दिखाने के बाद वो स्पेशल पेशेंट बन जाते हैं'' इतना कहकर
वार्ड अटेंडेंट खिलखिलाकर हंसने लगता है। महेश पूछता है ''डॉक्टर साहब को
क्लीनिक में दिखाने की फीस कितनी है ?'' वार्ड अटेंडेंट जवाब देता है ''500
रुपये है, मेरी मानो माताजी को एक बार वहां दिखा लाओ, इलाज सही से शुरू हो
जायेगा ऐसे कब तक परेशान होते रहोगे और माताजी की तकलीफ भी बढ़ती जायेगा''
महेश कहता है ''दिखा तो दूँ लेकिन फीस बहुत ज़्यादा है'' वार्ड अटेंडेंट
कहता है ''देखों भैया माताजी को हॉस्पिटल में 3 दिन तो हो ही गए हैं लेकिन
अभी तक आराम नहीं मिला है, ऐसे तो सही इलाज मिलने से रहा, माताजी की तबियत
और बिगड़े उससे पहले हिम्मत करके खर्चा कर दो सही तरीके से इलाज होगा तो
जल्दी आराम भी मिलेगा'' महेश थोड़ी देर कुछ सोचता है फिर कहता है ''ठीक है
आप मुझे डॉक्टर साहब के क्लीनिक का पता और उनके मिलने का टाइम बता दो आज ही
माँ को वहां ले जाकर दिखा देता हूँ'' वार्ड अटेंडेंट कहता है ''जाने से
पहले अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है, में तुम्हारे लिए शाम का अपॉइंटमेंट ले लेता
हूँ, शाम को इस पते पर पहुँच जाना'' कहते हुए जेब से डॉक्टर साहब का कार्ड
निकलकर महेश के हाथ में पकड़ा देता है।
शाम
को महेश माँ को डॉक्टर साहब के क्लीनिक में दिखा लाया है, वहां माँ का
चेकअप काफी अच्छी तरह से हुआ। दूसरे दिन सुबह डॉक्टर साहब वार्ड में
मरीज़ों के चेकउप के लिए आये हैं , बाक़ी मरीज़ों से मिलकर वो महेश की माँ के
पास आते हैं और मुस्कुराते हुए उनका हालचाल पूछते हैं, और फिर उनका चेकअप
करते हैं। माँ की तकलीफ के बारे में महेश ने कल शाम को ही उन्हें क्लीनिक
में सब बता दिया था। डॉक्टर साहब चेकअप के बाद नर्स से कहते हैं ''इनको
कमज़ोरी काफी है ग्लूकोस लगाओ, में इंजेक्शन लिख रहा हूँ सुबह शाम लगाना और
दवा भी बदल रहा हूँ, टेस्ट के लिए माताजी का ब्लड सैंपल भी ले लो'' फिर
महेश से कहते हैं ''चिंता की कोई बात नहीं जल्दी ठीक हो जाएंगी'' इतना कहकर
चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद नर्स आकर माँ को इंजेक्शन और ग्लूकोस की बोतल
लगा देती है और टेस्ट सैंपल भी ले लेती है। महेश खुश है की अब माँ का
इलाज सही तरीके से शुरू हो गया है अब उसकी माँ भी स्पेशल पेशेंट बन गई है।
समाप्त
शहाब ख़ान 'सिफ़र'
Post a Comment