पिंजरे के पंछी (कहानी) #सिफ़र
राजू
ने ज़िद से पूरा घर सर पर उठा रखा है। 10 साल के राजू ने जबसे अपने दोस्त
महेश के घर में रंगीन पक्षियों को देखा है तब से अपने मम्मी-पापा से घर में
पक्षी पालने की ज़िद पकड़ ली है। मम्मी-पापा ने बहुत समझाया की पक्षियों को
पिंजरे में बंद करके रखना सही नहीं, लेकिन राजू ने तो ज़िद पकड़ ली थी।
बहुत समझाने भी जब राजू नहीं माना तो मम्मी-पापा को उसकी ज़िद के आगे
झुकना ही पड़ा। दूसरे दिन राजू के पापा बाज़ार से उसके लिए रंगीन पक्षी का एक
जोड़ा ले आये हैं।
पक्षियों
को एक छोटे और सुन्दर पिंजरे में घर बरामदे में टांग दिया गया। स्कूल की
छुट्टियां है तो राजू का ज़्यादातर वक़्त पक्षियों के आस पास ही गुज़रता है।
पक्षियों को खाना देना उसका सब से पसंदीदा काम बन गया है। राजू पक्षियों के
पिंजरे के पास बैठकर उनसे बातें कर रहा है। पड़ोस में रहने वाला राजू का
दोस्त सुनील जो राजू का ही हमउम्र है वहां आकर उससे खेलने चलने के लिए कहता
है। दोनों छत पर खेलने के लिए जाते हैं। सुनील कहता है ''चलो चोर पुलिस
कहते हैं''। राजू कहता है ''ठीक है लेकिन में पुलिस बनूँगा तुम चोर
बनना'' सुनील कहता है ''नहीं में चोर क्यों बनुं ? मैं तो पुलिस ही
बनूँगा'' राजू कहता है ''अच्छा चलो टॉस करते हैं जो टॉस जीता वो पुलिस
बनेगा'' सुनील मान जाता है। राजू जेब से सिक्का निकालकर उछालता है, राजू
टॉस हार जाता है। अब उसे मन मानकर चोर बनना पड़ता है।
थोड़ी देर लुकाछिपी के बाद चोर पकड़ा जाता है। सुनील कहता है ''अब में चोर को जेल में बंद करूँगा'' राजू की छत पर एक छोटा सा कमरा है, जिसका इस्तेमाल स्टोररूम की तरह होता है। सुनील उस कमरे को जेल मानकर राजू को उसमे बंद करके बाहर से दरवाज़े की कुण्डी लगा देता है। राजू कहता है ''मैं जेल तोड़कर भाग जाऊंगा इंस्पेक्टर हा हा हा '' सुनील कहता है ''चोर अगर तुम भागोगे मैं तुम्हे फिर से पकड़ लूंगा''
अभी ये बात ही हो रही की अचानक नीचे से शोर की आवाज़ सुनाई देती है। सुनील छत की बालकनी से झांककर देखता तो नीचे एक मदारी बंदर के साथ नज़र आता है। मदारी को देखकर मोहल्ले के बच्चे इकठ्ठे हो गए हैं और ख़ुशी से शोर मचा रहे हैं। सुनील देखते ही ज़ोर से कहता है ''राजू जल्दी नीचे चल, वहां बन्दर का तमाशा शुरू होने वाला है'' इतना कहकर जल्दी से सीढ़ियों की तरफ भागता है। बंदर देखने के उत्साह में सुनील को यह भी ध्यान नहीं रहता की उसने राजू को कमरे में बंद किया हुआ है।
राजू सुनील से दरवाज़ा खोलने के लिए कहता है, लेकिन तब तक सुनील दौड़ता हुआ सीढ़ियां उतारकर नीचे पहुँच जाता है। राजू ज़ोर ज़ोर से सुनील को आवाज़ देता है लेकिन सुनील वहां है ही नहीं। राजू को नीचे से बच्चों के शोर और तालियों की हल्की हल्की आवाज़ सुनाई दे रही है। काफी देर तक राजू सुनील को आवाज़ देता रहा लेकिन सुनील तो कब का बंदर का तमाशा देखने जा चूका था।
थोड़ी देर के बाद बाहर से शोर की आवाज़ आना बंद हो गई है शायद मदारी तमाशा खत्म कर के जा चूका है काफी देर हो चुकी है। बहुत देर से राजू अकेला कमरे में बंद है। अब उसे डर लगने लगा है। वो ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा पीटते हुए मम्मी को आवाज़ देने लगता है, लेकिन दूसरी मंज़िल पर होने की वजह से उसकी आवाज़ नीचे तक नहीं पहुँच रही। अब राजू को रोना आने लगा है। मम्मी को पुकारते हुए ज़ोर ज़ोर से रो रहा है। बार बार मम्मी मम्मी कहकर दरवाज़ा पीटता और फिर थककर ज़मीन पर बैठ जाता। उसकी हालत पिंजरे में बंद पंछी की तरह हो गई थी। जैसे पंछी बार बार पिंजरे पर अपने पंजे और चोंच मारता है लेकिन फिर थककर वापस खामोश बैठ जाता है।
नीचे राजू की मम्मी को यही लगा कि राजू दोस्तों के साथ बंदर का तमाशा देख रहा होगा। जब काफी देर तक राजू घर वापस नहीं आया तो मम्मी की फ़िक्र हुई और उन्होंने राजू को ढूँढना शुरू किया। आसपड़ोस में पता किया लेकिन राजू नहीं मिला। फिर उन्हें याद आया की सुनील घर आया था और राजू उसके साथ खेलने जा रहा था। राजू की मम्मी सुनील के घर पहुंची, सुनील से राजू के बारे में पूछा तो सुनील को याद आया की राजू को तो उसने छत पर कमरे में बंद किया था और वो नीचे बंदर का तमाशा देखने आ गया था और फिर तमाशा देखकर अपने घर आ गया था। सुनील की बात सुनकर राजू की मम्मी फ़ौरन घर की तरफ़ भागती हुई आई और जल्दी जल्दी दौड़ते हुए सीढ़ियां चढ़ते हुए छत पर पहुंची। कमरे के पास पहुंचते ही उन्हें अंदर से राजू के सिसकने की आवाज़ आई, उन्होंने जल्दी से दरवाज़ा खोला तो देखा अंदर राजू आंसुओं में भीगा चेहरा लिए सिसक रहा है। मम्मी ने जल्दी से राजू को गले लगा लिया। राजू मम्मी के गले लगते ही ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। वो बहुत डरा हुआ है।
मम्मी राजू को लेकर नीचे आती हैं। राजू का मुंह धुलाकर उसे कपड़े बदलने को कहती हैं। मम्मी राजू को अपने हाथ से खाना खिलाती हैं। मम्मी के साथ होने से अब राजू को हिम्मत आ गई है। उसका डर और घबराहट भी धीरे धीरे खत्म हो गयी है। अब राजू बिलकुल नार्मल है। वो कहता है ''मम्मी मैं पक्षियों को दाना डालकर आता हूँ''
राजू दाना लेकर बरामदे में पिंजरे के पास जाता है। वहां वो देखता है की एक पंछी बार बार पिंजरे पर अपने पंजे और चोंच मार रहा है जैसे पिंजरे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो। ये देखते ही राजू को थोड़ी देर पहले की घटना उसकी आँखों के सामने घूमने लगती है। किस तरह वो रोते रोते दरवाज़ा पीट रहा था। उसे लगा जैसे वो उस पक्षी की जगह पिंजरे में बंद है। राजू की आँखों से आंसू बहने लगते हैं। राजू थोड़ी देर वहां खड़े होकर कुछ सोचता है फिर स्टूल लेकर आता है, स्टूल पर खड़े होकर पिंजरा उतारता है और पिंजरा हाथ में लेकर सीढ़ियां चढ़ने लगता है। छत पर पहुंचकर वो पिंजरे का दरवाज़ा खोल देता है और पिंजरे को थोड़ा हिलाता है, एक-एक करके दोनों पक्षी पिंजरे से निकलकर आसमान में उड़ जाते हैं। पक्षियों को उड़ता देख राजू के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। थोड़ी ही देर में दोनों पक्षी उड़ते हुए राजू की नज़रों से ओझल हो जाते हैं। पक्षियों को आज़ाद करके राजू बहुत खुश है। वो सीढ़ियां उतरकर नीचे आ रहा है। उसके चेहरे पर मुस्कान है। अब वो पिंजरे के पंछी का दर्द समझ चूका है।
समाप्त
लेखक : शहाब ख़ान 'सिफ़र'
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