क़र्ज़माफ़ी (लघुकथा ) #सिफ़र
रामू ने जबसे खबर सुनी की सरकार ने किसानों का क़र्ज़ माफ़ कर दिया है तबसे बहुत खुश है। रामू पर बैंक का पचास हज़ार रुपये क़र्ज़ है पिछले साल हुई ओलावृष्टि ने उसकी फसल ख़राब कर दी जिसकी वजह से वो बैंक का क़र्ज़ अदा नहीं कर पाया था। कुछ दिन पहले ही बैंक से उसकी संपत्ति कुर्क करने का नोटिस मिला था। संपत्ति के नाम पर उसके पास बस थोड़ी सी ज़मीन और एक छोटा सा घर ही तो है। अब उसे इत्मिनान है कि उसकी ज़मीन और घर बैंक कुर्क नहीं करेगा।
आज उसे बैंक से कर्जमाफ़ी का सर्टिफिकेट लेने जाना है। सुबह जल्दी ही घर से शहर जाने के लिए निकल चूका है। बैंक के बाहर अलग-अलग जगह से आये बहुत सारे किसान मौजूद हैं। रामू को अंदर बुलाया गया है। उसे बैंक मैनेजर ने कर्जमाफी का सर्टिफिकेट दिया।
रामू ने पूछा मैनेजर से पूछा ''साहब अब तो मेरा सारा क़र्ज़ माफ़ हो गया न ?'' मैनेजर ने मुस्कुराते हुए कहा ''नहीं तुम्हारा सिर्फ पचास रुपये माफ़ हुए हैं बाक़ी का अदा करना होगा''
रामु ने कहा ''लेकिन सरकार ने तो सारा क़र्ज़ माफ़ कर दिया था न ?''
मैनेजर ने कहा हमारे पास जो आदेश हैं हम वही कर रहे हैं, बहस करके हमारा वक़्त बर्बाद मत करो, ज़्यादा सवाल हैं तो जाओ जाकर सरकार से पूछो''।
रामू मुंह लटकाये बैंक से बाहर आ गया है। बाहर मौजूद किसान भी मुंह लटकाये खड़े हैं सबके साथ ऐसा ही हुआ है।
गाँव से शहर आने में ही रामू के किराये-खर्चे में 200 रुपये खर्च हो गए हैं और कर्जमाफ़ी के नाम पर सिर्फ़ पचास रुपये ही हुए। वो सोच रहा अब उसकी ज़मीन और घर को कैसे बचा पायेगा ? क्या ये वाक़ई में कर्जमाफ़ी है ?
लेखक : शहाब ख़ान 'सिफ़र'
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