पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर आधारित फिल्म क्या निष्पक्ष साबित होगी ? ✍ #सिफ़र
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधान
सचिव रहे संजय बारू की किताब पर आधारित फिल्म ''द एक्सीडेंटल प्राइम
मिनिस्टर'' का ट्रेलर हाल ही में रिलीज़ हुआ। ट्रेलर रिलीज़ होते ही चर्चा
और विवादों में आ गया है। ट्रेलर में खासतौर पर कांग्रेस और गाँधी परिवार
को निशाना बनाने वाले सीन हैं। ट्रेलर को खासतौर पर पांच राज्यों में हुई
बीजेपी की हार के बाद और आम चुनाव से कुछ समय पहले रिलीज़ किया गया है और
फिल्म की रिलीज़ डेट भी आम चुनाव से पहले की रखी गई है। कांग्रेस की और से इस फिल्म को पूर्व प्रधानमंत्री की छवि ख़राब करने की कोशिश कहा जा रहा है, मुरैना की अदालत में फिल्म के खिलाफ याचिका भी दायर की गई है। वहीँ बीजेपी की और से इस फिल्म
को प्रमोट करके ज़्यादा से ज़्यादा राजनैतिक फ़ायदा उठाना चाहती है।
फ़िल्म
केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं है उसके साथ-साथ सिनेमा को समाज का दर्पण
माना जाता रहा है फिर भी फिल्मकारों का मुख्य उद्देश्य फिल्म को सुपरहिट
करके ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाना ही होता है। ऐसे भी कई
फ़िल्मकार/निर्माता/कलाकार हैं जिन्होंने समय-समय पर देश और समाज को जागरूक
करने और महत्वपूर्ण सन्देश देने के साथ कुप्रथाओं का विरोध करने के लिए भी फिल्म बनाई हैं, हालाँकि ऐसी फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर कोई खास सफलता नहीं मिली। वर्तमान में फिल्मों को
विवादों से जोड़कर ज़्यादा से ज़्यादा चर्चा लाना भी फिल्म मार्केटिंग का
तरीक़ा बनता जा रहा है। फिल्मों में जानबूझकर विवादास्पद घटनायें, डायलाग
और शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा है ताकि फिल्म रिलीज़ से पहले ही चर्चाओं
में छा जाये। बॉलीवुड में एक नया ट्रेंड भी शुरू हो चूका है जिसमें
फिल्म के द्वारा किसी व्यक्ति की छवि को प्रभावित किया जा सके, इसमें छवि
को सुधारना और बिगड़ना दोनों ही शामिल है। जो काम लम्बे चौड़े भाषण और
आत्मकथाओं/किताबों से करना मुश्किल है उसे सिर्फ 2 - 3 घंटे की फिल्म के
ज़रिये लोगों के दिल दिमाग़ में बैठाकर आसानी से किया जा सकता है।
जब
भी किसी व्यक्ति के जीवन पर फिल्म बनाई जाती है तो उसमे दिखाई जाने वाली
घटनायें इस बार पर निर्भर करती हैं की वो फिल्म उस व्यक्ति की छवि को
सुधारने के लिए बनाई गई है या छवि को ख़राब करने के लिए। कुछ समय पहले
अभिनेता संजय दत्त के जीवन पर आधारित फिल्म ''संजू'' रिलीज़ हुई। फिल्म में
संजय दत्त की खलनायक वाली छवि को बदलने की कोशिश की गई थी। फिल्म में
संजय दत्त के जीवन से जुड़े विवादों को सकरात्मक रूप से दिखाया गया चाहे वो
ड्रग्स लेना हो, अंडरवर्ल्ड से उनके सम्बन्ध या अवैध हथियार रखना सभी
घटनाओं को इस तरह दिखाया गया कि फिल्म देखकर आपके मन में संजय दत्त के लिए
हमदर्दी पैदा होगी। फिल्म के अंत में देखने वाले के मन में संजय दत्त की
खलनायक वाली छवि हालत से मजबूर होकर एक गुमराह हुए शख्स की बन चुकी होती है
जो अब गुमराही से निकलकर सही रस्ते पर आ चूका है।
किसी
व्यक्ति के जीवन पर बनी फिल्म को को चर्चित बनाने के लिए काल्पनिक घटनायें
और डायलाग भी जोड़े जाते हैं। हाल ही में बाल ठाकरे के जीवन पर बनी फिल्म
''ठाकरे'' का ट्रेलर रिलीज़ हुआ है। ट्रेलर में कई घटनाओं को दिखाया गया है
जिनमे एक सीन में जिसमे बाल ठाकरे को कोर्ट में राम मंदिर पर डायलॉग बोलते
हुए दिखाया गया है इस ट्रेलर पर बीबीसी की एक स्टोरी के अनुसार बाल ठाकरे
पर किताब लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन का कहना है की उनकी
जानकारी के अनुसार बाल ठाकरे कभी कोर्ट गए ही नहीं थे उनके वकील ही कोर्ट
से जुड़े सभी मामलों को देखते थे कोर्ट में उनकी जगह पेशी पर शिवसेना के
नेता ही आते थे। फिल्म के ट्रेलर के एक अन्य सीन में बाल ठाकरे और जावेद
मियादाद को दिखाया गया है जिसमे बाल ठाकरे को सैनिकों के बारे में बात करते
हुए दिखाया गया है पत्रकार सुजाता आनंदन के अनुसार बाल ठाकरे और जावेद
मियादाद की जो मुलाक़ात हुई थी उसमे सैनिकों के बारे में ऐसी कोई बातचीत
नहीं हुई थी। ज़ाहिर है ये घटनायें और डायलाग सिर्फ़ फिल्म को चर्चित बनाने
के लिए ही जोड़े गए हैं।
''द
एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'' फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल
की घटनाओं को कितनी निष्पक्षता के साथ दिखाया गया है ये फिल्म के रिलीज़
होने के बाद ही पता चलेगा। फिल्म को चर्चित और विवादस्पद बनाने के लिए
क्या काल्पनिक घटनायें और डायलाग जोड़े गए हैं या नहीं ये भी फिल्म के
रिलीज़ होने के बाद ही पता चलेगा। डॉ. मनमोहन सिंह का 10 साल का कार्यकाल पूरी तरह बेदाग़ रहा है, उन पर कभी किसी तरह का कोई आरोप नहीं लगा है। डॉ. मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में उनकी अनेकों उपलब्धियां भी रही हैं भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील, शिक्षा का अधिकार, रोजगार गारंटी योजना, 2004
से 2014 के बीच देश में हुए सभी आर्थिक सुधार जब उन्होंने प्रधानमंत्री
का पद संभाला उस समय देश का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 8.5 के
आसपास था एक वर्ष में ही उन्होंने इसे 5.9 फीसदी पर लाने में कामयाबी
हासिल की। फिल्म में उन सभी उपलब्धियों को कितनी ईमानदारी के साथ दिखाया
जायेगा या नहीं, यह भी 11 जनवरी को फिल्म रिलीज़ होने के बाद ही पता चलेगा।
भविष्य में हो सकता है वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर भी फिल्म का निर्माण हो और उस फिल्म में नरेंद्र मोदी की छवि को किस तरह का दिखाया जायेगा ये देखना वाक़ई में दिलचस्प होगा।
✍ शहाब ख़ान 'सिफ़र'
Post a Comment