आज़ादी के 7 दशक बाद कितने आज़ाद हैं हम ? #सिफ़र #Sifar
भारत को आज़ाद हुए 72 साल हो गए हैं इस साल हम आज़ादी के 73 वें वर्ष में
प्रवेश कर रहे हैं। लम्बे वक़्त तक ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी के बाद 15
अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली। देश की आज़ादी के लिए, अपने सपनों का
भारत बनाने के लिए हज़ारों स्वंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की क़ुर्बानी
दी। 15 अगस्त 1947 के बाद से आज तक पिछले 70 सालों में देश में क्या-क्या
बदलाव आया ? 70 साल पहले और आज के वक़्त में देशवासियों के जीवन स्तर में
क्या फ़र्क़ आया है ? क्या आज देश के हर नागरिक के पास बुनियादी सुविधायें
आसानी से उपलब्ध हैं ? क्या देश के नागरिकों को उनके सभी संवैधानिक अधिकार
प्राप्त हैं ? हालाँकि तब के भारत और अब के भारत में ज़मीन आसमान का फ़र्क़
है। पहले के मुक़ाबले बहुत कुछ बदला है। लेकिन कुछ ऐसा भी है जिसमे कोई खास
बदलाव नहीं आया है, वो है शासन करने वाले का रवैया आसान शब्दों में सरकार
की कार्यप्रणाली कह सकते हैं। वर्तमान में सरकारों (केंद्र / राज्य) का
रवैया काफी कुछ ब्रिटिश शासन के समय के अधिकारियों जैसा ही है।
ब्रिटिश शासनकाल के समय सरकार की चापलूसी करने वालों को सम्मान और पदवियाँ
दी जाती थी, ब्रिटिश सरकार के गलत कामों का विरोध करने वालों को बाग़ी और
देशद्रोही कहा जाता था, स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार का विरोध करने पर
फांसी दी जाती थी, वर्तमान में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है सरकार की आलोचना
करने पर देशद्रोही कहा जाता है। जिस तरह से ब्रिटिश शासन के समय सरकार की
आलोचना करने वाले अख़बारों पर पाबन्दी लगाई जाती थी वर्तमान में भी उसके कई
उदाहरण हैं कुछ समय पहले एक न्यूज़ चैनल 24 घंटे के लिए बैन करने का
आदेश दिया गया लेकिन बाद में जनविरोध के कारण उस आदेश को वापस लिया गया।
ईमानदार पत्रकारों को नौकरी से निकाला जा रहा है। पुण्य प्रसून वाजपेयी और
अभिसार शर्मा को अपनी ईमानदार पत्रकारिता की क़ीमत चुकानी पड़ी। आज़ादी के 70 साल
बाद भी देश में भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोज़गारी, अपराध, महिला असुरक्षा,
आतंकवाद, नक्सलवाद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद , राजनीती का
अपराधीकरण जैसे समस्याओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है।
आज
भी देश ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके पास न तो पेट भर खाना है न सर के ऊपर छत, न
रोज़गार है न बुनियादी ज़रूरते पूरी करने लायक आमदनी। बीमार हो जाये तो सही
तरीके से इलाज मिलना भी मुश्किल है। पिछले कुछ समय में भूख से हुई मौतें
दिल दहला देने वालीं हैं। लोगों के खानपान और रहन सहन के तरीकों पर
पाबंदियां लगाई जा रही हैं। धर्म जाती के नाम पर भेदभाव किया जाने लगा
है। आज भो एक दलित को ,शादी में बारात निकलने पर पाबंदियां लगाई जाती
हैं। गोहत्या जैसे फ़र्ज़ी मुद्दे बनाकर लोगों की हत्याएँ की जा रही हैं और
हत्यारों का महिमामंडन किया जा रहा है। एक हत्यारे के समर्थन में लोग
प्रदर्शन करते हैं, हाईकोर्ट की छत पर भगवा झंडा लगा देते हैं। वरिष्ठ
नेता द्वारा हत्यारों को फूलमाला पहनकर सम्मान किया जाता है। रेपिस्ट के
समर्थन में लोग तिरंगा लेकर जुलुस निकलते हैं।
ब्रिटिश शासनकाल में भी यही होता तो वो शासन करते थे जनता के
दुःख दर्द से कोई लेना देना नहीं था। आज़ादी के 70 साल बाद देश की जनता के
पास संवैधानिक अधिकार तो हैं लेकिन उन्हें उनके अधिकार हासिल नहीं करने दिए
जा
रहे। उस समय जिस तरह से पाबंदियां लगाई जाती थी आज भी लगाई जा रही हैं।
सरकारें (केंद्र / राज्य) अपनी मर्ज़ी से बिना जनता का हित समझे कानून बनाती
हैं। राजनीति की चक्की में सत्ता और विपक्ष के पाटों के बीच जनता को ही
पिसना पड़ता है।
आज देश में किसानों की बढ़ती आत्महत्या
चिंता का विषय है लेकिन उस पर भी सत्तापक्ष और विपक्ष अपनी अपनी राजनैतिक
रोटियां सेंकते हैं। देश में हुई कोई प्राकृतिक दुर्घटना हो, सड़क या रेल
दुर्घटना या कोई आतंकी हमला हर मुद्दे पर पर सत्तापक्ष और विपक्ष अपना
राजनैतिक फायदा देखकर राजनीति करते हैं और तो देश के सैनिकों की शहादत पर
भी राजनीति करने से बाज़ नहीं आते। अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन कर रहे
किसानों की समस्याओं को सुलझाने के बजाये उन पर गोली चलाई जाती है, कभी
लाठी चार्ज किया जाता है । देश में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में
बढ़ोतरी हुई है, वर्तमान में मासूम बच्ची से लेकर बुज़ुर्ग महिला तक
सुरक्षित नहीं है, गांव में घूँघट में रहने वाली महिला से लेकर मेट्रो सिटी
में कॉर्पोरेट ऑफिस में काम करने वाली महिला तक असुरक्षित है।
राजनेताओं
की संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है और जनता पर टैक्स का बोझ बढ़ता जा रहा
है। महंगाई दिन दूनी रात चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ती जा रही है। राजनीति का
अपराधीकरण हो गया है। हर पार्टी में ऐसे लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं जिन
पर हत्या, रैप, दंगा करने जैसे गंभीर मुक़दमे दर्ज हैं। जिन लोगों को जेल
होना चाहिए वही लोग मंत्री, सांसद और विधायक बने बैठे हैं। नैतिकता और
सिद्धांत की बातें सिर्फ किताबों में नज़र आती हैं, राजनेता कई बार ऐसे ऐसे
बेहूदा और अनर्गल आपत्तिजनक बयान देते हैं कि शर्म को भी शर्म आ जाये।
आज़ादी के 70 साल के बाद भी हमें अपने सपनो का भारत नहीं मिला है। हमें
अपने सपनो का भारत चाहिए, ऐसा भारत जहाँ देश के हर नागरिक के अधिकारों
की रक्षा हो, देश के हर नागरिक के पास बुनियादी सुविधायें आसानी से उपलब्ध
हों, जहाँ कोई भूखा न रहे, हर एक पास अपना घर हो, सही इलाज के आभाव में
किसी की मौत न हो, कोई बेरोज़गार न हो, महिलाओं को सम्मान मिले, देश पूरी तरह भ्रष्टाचार से मुक्त
हो, किसी के साथ धर्म / जाति या क्षेत्र के नाम पर भेदभाव न हो, जनता के
पास जनप्रतिनिधियों से सवाल करने का अधिकार हो साथ ही ठीक से काम न करने पर
जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार हो।
।। जय हिन्द ।।
शहाब ख़ान 'सिफ़र'
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