ईद-उल-अज़हा पर लॉकडाउन से ग़रीबों की आमदनी का एक ज़रिया बंद #सिफ़र
ज़िल
हिज्जाह माह की 10 तारीख़ को मनाया जाने वाला ईद-उल-अज़हा का त्यौहार
मुसलमानों के लिए काफ़ी अहमियत रखता है इस महीने में किये जाने वाले हज और
क़ुर्बानी की वजह से ये काफ़ी अहम है एक तरफ जहाँ मुसलमानो के लिए इसकी मज़हबी
अहमियत है वहीँ दूसरी तरफ़ यह मुबारक महीना बहुत सारे लोगों के लिए
रोज़गार का ज़रिया भी है लेकिन इस बार सरकार ने ईद से पहले लॉकडाउन कर दिया जो ईद के बाद तक रहेगा जिसकी वजह से बहुत सारे लोगों का रोज़गार छिन जायेगा। पहले ही कोविड 19 की वजह से लोगों के काम पिछले 4-5 महीने से बंद थे ऐसे में इस लॉकडाउन से इस महीने में क़ुरबानी की वजह से होने वाली आमदनी बंद हो जाएगी खासतौर से ग़रीब तबके के लोगों की जिनकी आमदनी सिर्फ़ ईद उल अज़हा के वक़्त हो जाती थी। गांव में बहुत सारे ऐसे ग़रीब लोग मिल जायेंगे
जिनके पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है ऐसे लोग हर साल कुछ जानवर (बकरा, बकरी,
भेड़, दुम्बा) पाल लेते हैं और ईद-उल-अज़हा के वक़्त उन्हें बेचकर उनकी
कुछ कमाई हो जाती है, बहुत से लोगों का पूरा साल का गुज़ारा ही सिर्फ इस
कमाई से होता है क्योंकि न तो उनके पास खेती के लिए ज़मीन है और न ही रोज़गार
का कोई और जरिया। इन जानवरों को पालने के लिए न ही तो बहुत बड़ी जगह की
ज़रूरत होती है और न ही इनके खाने पर बहुत ज़्यादा ख़र्चा करना पड़ता है, इन
जानवरों को गांव के आसपास के जंगलों में दिन भर चराई के लिए छोड़ दिया जाता
हैं जहाँ ये पेड़ों की पत्तियां खाकर पेट भर लेते हैं और फिर रात में घर में
बांध दिया जाता है इस तरह इनके पालने में लगभग न के बराबर ही ख़र्चा होता
है। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अपने फार्म हाउस पर बहुत ज़्यादा तादाद में इन्हे पालते हैं और इनकी देखभाल
और चराई के लिए कुछ लोगों को काम पर रखते हैं जिसकी वजह से भी कई लोगों को
काम मिलता है।
![]() |
Image by Mustafa shehadeh from Pixabay |
शहरों
में जानवर के चारे के लिए बिकने वाली हरी पत्ती बेचने वालों को भी इस
मुबारक महीने में अच्छी ख़ासी कमाई हो जाती है। लोग आसपास के जंगलों से
पेड़ों से पत्ती तोड़कर लाते है और फिर उसे बेचते हैं। ईद-उल-अज़हा के महीने
में अक्सर मंडियों और सड़क के किनारे ये पत्तियां बेचने वाले मिल जायेंगे।
मैं अपने शहर भोपाल की बात करूँ तो यहाँ बुधवारा, इस्लामपुरा, जिन्सी
चौराहा, भोपाल टाकीज़ और कई जगहों पर पत्ती बेचने वाले नज़र आ जायेंगे, सिर्फ 3-4 घंटे के अंदर ही इन्हे 300 - 400 रूपये की कमाई हो जाती
है वरना आम दिनों में तो 50 रुपये मिलना भी मुश्किल है। इसी तरह से छुरी
में धार करने वालों को भी इस मुबारक महीने में अच्छी कमाई हूँ जाती है,
जहाँ आम दिनों में इन दुकानों काम नहीं होता वहीं ईद-उल-अज़हा के महीने में
इतनी भीड़ होती है कि छुरी में धार करवाने के लिए दुकान से टोकन नंबर दिया
जाता है। इनके अलावा कई लोग धार बनाने की छोटी मशीन लेकर घर घर जाते हैं
उन्हें भी इस महीने में अच्छी खासी कमाई हो जाती है। क़ुरबानी के जानवर की
खाल की वजह से चमड़ा उद्योग में भी ईद-उल-अज़हा के बाद काम में तेज़ी आती है
जिससे वहां काम करने वाले कारीगरों और मज़दूरों को काम मिलता है।
ईद-उल-अज़हा
पर ऐसे ग़रीब जो आमदनी न होने की वजह से गोश्त ख़रीद कर नहीं खा सकते उन्हें
भी ईद-उल-अज़हा पर पेट भर गोश्त खाने को मिल जाता है क्योंकि क़ुर्बानी के
गोश्त के 3 हिस्सों में से एक हिस्सा ग़रीबों के लिए बताया गया है। जो लोग
ग़रीबी की वजह से पुरे साल गोश्त का एक लुख्मा भी नहीं चख पाते उन्हें भी
ईद-उल-अज़हा के मौक़े 2-3 दिन तक पेट भर गोश्त खाना नसीब होता है।
ईद-उल-अज़हा का मुबारक महीना सबके लिए रहमत और बरकत लाता है जहाँ अज़ीम अज्र
और सवाब है वहीं लोगों के लिए एक रोज़गार और कमाई का जरिया भी है। लेकिन इस बार सरकार के लॉकडाउन के ग़लत फ़ैसले ने हज़ारों लोगों की आमदनी के एक ज़रिये को बंद कर दिया है
शहाब ख़ान ''सिफ़र''
Post a Comment